परिस्थितयां लक्ष्य बदल देती हैं?

आज कोरोना संकट ने जहां पूरी दुनिया को उथल पुथल कर दिया है वहीं सबसे बड़ी चुनौती व्यक्तिगत स्तर पर है। लोगों के पास खाने के लिए खाना नहीं है और ना ही करने के लिए कुछ काम, ऐसे में इसके दुष्प्रभाव उनके सामाजिक, आर्थिक जीवन के साथ साथ उनके निजी जीवन पर भी पड़ रहा है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में कोरोना संकट के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि आयी है जोकि एक चिंता का विषय है। कोरोनो महामारी के नकारात्मक प्रभाव मुख्य रूप से विशिष्ट उद्योगों में काम करने वाले लोगों द्वारा वहन किए जा रहे हैं। 
इस महामारी के प्रकोप के कारण यह भी तय हो चुका है कि परिस्थितियों ने अल्पकालिक लक्ष्य और दीर्घकालिक लक्ष्य दोनों को वैश्विक और व्यक्तिगत स्तर पर बदल दिया गया है। देशों ने अपना अल्पकालिक लक्ष्य बदल कर कोरोनोवायरस से बचाव की ओर केंद्रित कर दिया है। कोरोनो वायरस के प्रकोप से अर्थव्यवस्था के प्रति भारत का  दृष्टिकोण बहुत बदल गया है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कहा कि एक समय में दुनिया भर में भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकवरी के आसार दिख रहे थे, लेकिन Covid -19 अब '' भविष्य पर मंडरा रहा है। '' आरबीआई ने कहा कि Covid -19 के दूसरे दौर का प्रभाव अधिक गंभीर हो सकता है क्योंकि यह वैश्विक व्यापार चैनल के माध्यम से निवेशकों और उपभोक्ताओं के विश्वास को ध्वस्त कर सकता है।



 अब इन परिसथितियों में भारतीय सरकार के उस 
5 खराब डॉलर (5 trillion dollars) सपने को बहुत ज़ोर का झटका लगा है, जिसको वह अपने इस कार्यकाल में पूरा करना चाहती थी। अब इन हालातों में यह लक्ष्य एक समय अवधि में पूरा करना नामुमकिन सा लगता है। अगर में व्यक्तिगत स्तर पर इस बदलाव की बात करू तो इसका असर सबसे अधिक उन लोगों पर पड़ने वाला है जो अभी बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं। उनको इन परिस्थितियों में अपने लक्ष्य बदलने पड़ सकते हैं।
बदलाव तो प्रकृति का नियम है, परन्तु अस्मिक बदलाव से संघर्ष बहुत अधिक बढ़ जाता है।

 

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