लैंप की गर्म चिमनी का स्वाद!

आज जब हर जगह अशांति का मौहौल नज़र आता है तब मैं कुछ समय के लिए अपने दोस्तों के साथ रात को टहलने निकल जाता हूं।
दिन भर चुप चाप रहने के बाद जब अंततः कोई ऐसा मिलता है जिससे आप अपने दिनभर की भड़ास निकाल सकें तो उसका भी एक अलग ही मज़ा होता है। हम अक्सर बहुत से मुद्दों पर चर्चा करते हैं जिनमें देश दुनिया के आलावा बहुत सारे बेकार के मुद्दे भी होते हैं। 
कल अचानक पुराने दिनों की बात छिड़ी तो बात बहुत दूर तक गई। बचपन की यादें भी खुशी देती हैं। इसलिए आज मैं अपने जीवन का सबसे पहला अनुभव और सीख इस ब्लॉग में साझा करता हूं। 


उन दिनों मैं एक छोटे से शहर और बड़े से गांव अर्थात हसनपुर नामक एक कस्बे में रहने वाला एक नासमझ बच्चा हुआ करता था जो दुनिया से अनजान रहता था, जिसकी नाक हमेशा बहती रहती थी। वैसे मैं अक्सर सोचता हूं दुनिया से अनजान रहने में ही सुख था क्योंकि जैसे - जैसे इस निष्ठुर दुनिया को जानना शुरू किया है तैसे तैसे सुख और खुशहाली की मात्रा जीवन में घटती चली गई। मैं पढ़ाई में बहुत कमज़ोर था, इतना कि कक्षा के कमज़ोर छात्रों में मेरी भी गिनती होती थी। उस समय हमारे शहर में बिजली आने का समय कुछ इस प्रकार हुआ करता था कि 1 सप्ताह दिन में और एक सप्ताह रात में, वह भी केवल कुछ घंटों के लिए। इन्वर्टर उस समय इतने आम नहीं थे जितना की आज हैं। इसलिए रोशनी की व्यवस्था के लिए चिमनी वाले लैंप इस्तेमाल किए जाते थे। उस समय शायद में कक्षा 3 या 4 में था हमेशा की तरह आज भी बिजली नहीं आ रही थी इसलिए मैं और मेरी बहन चौकी पर कॉपी - किताब रखकर, लैंप की रोशनी में पढ़ रहे थे तब अचानक मेरी बहन ने सवाल किया कि इस गर्म चिमनी का स्वाद कैसा होता होगा। तब मैंने बिना कुछ सोचे समझे अपनी जीभ उस बहुत ज्यादा गर्म चिमनी पर झट से लगा दी। परिणाम स्वरूप मुझे स्वाद मिल गया। चिमनी फीकी थी और आने वाले कई दिनों के लिए मेरी जीभ का स्वाद भी फीका कर गई थी। मेरी जीभ बहुत ज्यादा जल चुकी थी क्योंकि मैंने अपनी जीभ एक दम नहीं हटाई थी। अगले दो महीने तक ना तो मैं ठीक से खा पाया और ना ही सो पाया। मुझे अभी भी याद है माह के महीने के अंतिम दिन पर जीभ जलने की वजह से ना तो मैं गंगा जी जा सका और ना ही पास मैं हो रहे भंडारे में प्रसाद खा सका। उस दिन मुझे अपने जीभ जलने का बहुत अफ़सोस हुआ। खैर वक़्त ने जीभ के ज़ख्मों को भरा और मैं स्वस्थ हो गया। 
इस एक घटना से मैंने ये सीख ली कि कोई भी काम जब किया जाए तब पूरी तरह सोच समझ कर किया जाए। आपके मन में जानने कि इच्छा हो परन्तु उसको कैसे जानना है यह भी पहले समझ लिया जाए तो बेहतर रहता है। किसी कार्य को करने से पहले परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए ऐसा मैं भी मानता हूं, पर किसी काम को करने से पहले सावधानी भी जरूरी है। और बचपन कि महिमा तो मैं क्या की बखान कर सकता हूं आप सभी जानते हैं बचपन कैसा भी रहा हो परन्तु आज जो हम हैं उससे लाख गुना बेहतर था।
धन्यवाद्!

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1 टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
😆😆 bhut acha likha bachpan ki yd aa gyi