स्त्री प्रकृति की वह इकाई जिसके बिना श्रष्टि की कल्पना भी संभव नहीं है और भारत में तो स्त्रियों को वेद पुराण और शास्त्रों में जो सम्मान मिला है वह शायद ही किसी ओर संस्कृति में मिला हो।
सभी देवों के साथ उनकी पत्नियों को उनके साथ प्रदर्शित कर यह संदेश देना कि स्त्री पुरुष समान हैं, अति शोभनीय है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस में लिखा है कि कलयुग स्त्री प्रधान युग होगा। आज स्त्रियों कि कामयाबी को देख कर लगता है कि उनकी दूरदर्शिता बहुत कमाल की रही होगी।
परन्तु आज के समय में भी हमको अगर नारी सशक्ति करण जैसे शब्द सुनने को मिलते हैं तो थोड़ी मायूसी भी होती है कि हमको इसके लिए अलग से कार्य करना पड़ता है। मेरा बहुत स्पष्ट मानना है कि अगर नारियों का सशक्तीकरण कोई कर सकता है तो वह स्वयं नारियां ही हैं। मैं मानता हूं कि स्त्रियों की दयनीय स्थिति के लिए पुरुष भी कहीं ना कहीं जिम्मेदार हैं परन्तु अधिकांशतः इसकी जिम्मेदार भी वह स्वयं ही हैं। अगर नारी, नारी की दुश्मन ना बनी होती तो यह स्थिति उत्पन न होती। अगर नारी जुल्म को ना सहकर उनसे लडने और चुनौतियों को स्वीकार करती तो यह दिन उन्हें देखना ही न पड़ता। स्त्रियां अपनी साथ वाली स्त्रियों का सम्मान और सहायता करती तो आज स्त्रीयां शिखर पर होती।
भारतीय संस्कृति की विचार धारा को बालविवाह, घुंगट प्रथा, और सती प्रथा से जोडकर केवल और केवल उसको दूषित करने का कार्य कुछ पूर्वाग्रह से ग्रस्त लोगों द्वारा किया गया है। मैं स्वीकार करता हूं कि यही सभी हमारी पद्धति का कुछ समय तक हिस्सा रही है परन्तु इसको मूल भावना बता कर सनातन संस्कृति को बदनाम करना उचित नहीं है। किसी शास्त्र में बालविवाह, घुंगट प्रथा, और सती प्रथा जैसी प्रथाओं का जिक्र भी नहीं हैं।
मुझे पता है शायद कहीं ना कहीं से, कुछ न कुछ निकाल कर कुछ लोग उसका गलत व्याखान करके कुछ भी साबित कर सकते हैं परन्तु सूर्य को रोशनी के लिए दीपक की आश्यकता नहीं होती।
आज जहां देखो वहां नारीवाद का झंडा लिए कोई ना कोई खड़ा है और अच्छा भी है परन्तु उनको नारीवाद का असली मतलब भी तो पता होना चाहिए। नारी सशक्तिकरण का मतलब ही नारियों को मानसिक, शारीरिक, सांस्कृतिक, भौतिक और सभी क्षेत्रों में मजबूत बनाना है परन्तु हमने इसके उल्ट उनको ये सिखाया कि आप पुरुषों से श्रेष्ठ हैं, आपकी ये स्थिति केवल और केवल पुरषों के कारण है। और भारत के परिपेक्ष्य में तो मुझे केवल एक ही पंक्ति याद आती है नारी सशक्तिकरण मतलब ' लड़कों को गाली और लड़कियों को ताली ' । यह भेदभाव की दीवार आने वाले समय में बहुत ही दुखदाई होगी ऐसा मेरा मानना है।
ना तो हमको लड़कों को यह सीखना है कि तुम लड़कियों से श्रेष्ठ हो और ना ही लड़कियों को यह सीखना है कि तुम लड़कों से श्रेष्ठ हो या तुम निम्न हो। हमको हमेशा दोनों को यही शिक्षा देनी होगी की कोई निम्न या श्रेष्ठ नहीं हैं अपितु सब समान हैं। ना हमको स्त्री को देवी बनाना है और ना ही पुरुष को परमेश्वर। शिक्षा से मेरा तात्पर्य यह नहीं है कि हमको यह शोर मचा मचा कर बोलना है कि हम सब समान है जो कि अक्सर होता भी है, मेरा तात्पर्य विचार और आचरण से है। अगर आपके विचार और आचरण में कोई भेदभाव नहीं होगा तो निश्चित तौर पर हमको किसी सशक्तिकरण की आवश्यकता ही नहीं होगी।
अपने और अपनों का ध्यान रखे, प्रेम और सम्मान करे।
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