आज जब महामारी की मार पड़ी तो उसने गरीबों और बेसहारों से उनकी ज़िंदगी सी ही छीन ली है।
पूरा विश्व आज जब लॉकडाउन कि मार झेल रहा है तो विस्थापितों और गरीबों के लिए कोई विकल्प भी नहीं छोड़ा है। बाहर निकलकर अपने पैतृक गांव जाए तो संक्रमण व जान जाने का खतरा और लॉकडाउन का पालन करे तो भुखमरी और धन की कमी काल बन कर मानों उनके दरवाजे पर खड़ी है।
जब धनवानों के लिए मदद की जरूरत थी तब भारत और राज्य सरकारों ने विशेष विमान और वायुसेना के विशेष सुविधाओं वाले विमानों को भेजा और उनकी सहायता उचित समय पर, उचित संसाधनों से की और करनी भी चाहिए क्योंकि सभी भारतीय हैं पर इस देश में रहने वाले उन असंख्य मजदूरों और गरीबों का क्या जिनको जब उनके घर वापस लौटने की सुविधा देने के समय आया तब सरकारों ने इससे कमतर सुविधाएं भी उन्हें उपलब्ध नहीं कराई। लोगों को भेड़ बकरियों की तरह सड़क पर मरने के लिए खुला छोड़ दिया गया, बिना किसी तैयारी के केवल एक आदेश जारी उनको संतुष्ट कर दिया गया। यह सिर्फ और सिर्फ सरकारों की गरीबों के प्रति असंवेदनशीलता को प्रदर्शित करता है।
एक सच्चे दृष्टांत के माध्यम से उस गरीब की पीड़ा को यहां लिखना चाहता हूं। कल सुबह 5:30 बजे के आस पास मैं अपने कस्बे के पास एक गांव में दूध लेने के जा लिए का रहा था। तभी कुछ गरीब मजदूरों के परिवार, सामान ढो कर अपने अपने गांवों की ओर जा रहा थे। बड़े बुजर्ग थोड़ा हिम्मत करके चल रहे थे, परिवार के नौजवानों ने सामान और बच्चों को अपने कंधे और हाथों में लिया हुआ था परन्तु 5 से 10 साल के बच्चे घर वालों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहे थे तभी 2-3 बच्चों पर मेरी नजर पड़ी, मैने देखा वह कुछ लंगड़ा कर चल रहे थे, मैं भाव विभोर हो गया। शायद उन बच्चों के पैरों में चल - चल कर छाले पड चुके थे, नौजावनों के कंधो पर सामान के निशान पड़ चुके थे। खाना भी शायद मिला हो या ना हो, तब भी उनको केवल जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचने की उम्मीद थी। यह सच जब आप आत्मसार करते हो तो आपको उनकी पीड़ा का एक बहुत छोटा सा हिस्सा थोड़ा महसूस होता है। बहुत से लोग 4 किलो मीटर भी नहीं चल सकते और गरीब लोग 400 किलो मीटर भूखे प्यासे चल कर अपने घरों को पहुंचने का जतन कर रहें हैं। मन में बैचेनी और रुदन है परन्तु किसी से अपना दुखड़ा बांट भी तो नहीं सकते क्योंकि उनके समस्या सुनने वाला कोई है ही नहीं।
अंत में अपने पिता जी की एक बात तो याद करके आपसे आज्ञा चाहूंगा। पिता जी हमेशा कहते हैं कभी किसी गरीब का दिल मत दुखाना क्योंकि गरीब कि बद्दुआ में दुनिया की सबसे बड़ी ताकत होती है। उम्मीद है अगर सरकार भी इस बात को आत्मसार कर ले तो कुछ इस तबके के लोगों पर भी ध्यान दे।
अपने और अपनी का ध्यान रखें।
गरीबों की सेवा और मदद का कोई अवसर जाने ना दें क्योंकि अगर उसकी बद्दुआ में ताकत है तो उसकी दुआ में ताकत जरूर होगी।
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