कोरोना और अफवाह

कोरोना, भारत में अब तीसरे चरण के निकट है और शायद प्रारंभ भी चुका है। यह वैश्विक चुनौति अब विकराल रूप ले चुकी है। क्या आपको पता है कॉरोना इतना भयंकर ना होता अगर इसका साथ अफवाहों और डर ने ना दिया होता। डर तो समझ भी आता है परन्तु अफ़वाहों को जन्म देने वाले ये लोग जो अपनी आहुति इस हवन में दे रहे हैं, अत्यंत ही निराशजनक और दुखद है। अब इसको अज्ञानता नहीं तो क्या कहेंगे। अज्ञानता के वसीभूत हो कर भी समझ आता है परन्तु मनोरंजन के लिए इस कोरोना नाम की अग्नि से खेलना, वह भी इतने लापरवाह तरीके से, बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। 
अगर अफ़वाहा फैलाना इतना ही मनोरंजक है तो क्यों ना लोगों को अफ़वाहों के जरिए कुछ अच्छी बाते और इस बीमारी के बारे में अवगत कराया जाए। इस बीमारी के हर पहलू को मनोरंजक तरीके से लोगों तक सही जानकारी उपलब्ध कराने का माध्यम बनाया जाए। सच्चाई यह है कि हम लोगों की आत्मा मर चुकी है, हम लोग इतने लोभी और खुदगर्ज हो चुके हैं कि किसी की भावनाओं को कुचलना और उनकी जान से खेलना भी हमको मनोरंजक लगने लगा है।

आज से दो दिन पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, रात के 2 बजे से 4 बजे तक एक ऐसी अफवाह फैली जिससे पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश मध्य रात्रि में जाग गया। अगर आप अफवाह सुन लें तो अपना माथा पीटने लगेंगे। अफवाह यह थी कि एक किसी गांव में मध्य रात्रि में सारे गांव के लोग पत्थर बन गए और अगर आप भी सो गए तो आप भी पत्थर बने रह जाएंगे। इस अफवाह का कोई भी सार्थक और वै्ञानिक अर्थ है परन्तु बहुत सारे लोग मध्य रात्रि में जागे, पूरी रात जागे रहे और इस अफवाह को कई गुना तेज गति से फैलने में मदद की। ईश्वर ने हम सभी को एक मस्तिक नाम का विशेष हिस्सा हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से में दिया इसलिए दिया क्योंकि जो भी चीज अंदर जाए पूरी तरह से शुद्ध और फिल्टर हो कर जाए, हम लोगों ने उसका इस्तेमाल शायद पूरी तरह समाप्त कर दिया है।
इसके अतिरिक्त विशेष रंग कि चूड़ियां पहनना, घर के बाहर विशेष चिन्ह् बनाना, देसी नुस्खे बताना, विभिन्न ग्रंथों में इसके भविष्वाणियां होने की अफवाह भी शामिल हैं। अशिक्षित वर्ग को तो छोड़िए एक उच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग इसमें कुछ खास ही सक्रिय है। इस देश का तो ईश्वर भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि अगर वह भी कुछ अच्छा करेंगे तो यह अफवाह वर्ग उसको भी ऐसा कुप्रचारित करेगा कि भगवान भी उनसे हार मान लेगा।

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