आज हनुमान जयंती है.....

ताकत जिनमें बेहिसाब है, भक्ति जिनकी बेमिसाल, वो तो अंजनी मईया का लाला है।
भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, आंजनेय, केसरी नंदन और राम जी के परम भक्त हनुमान जी का अवतरण त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था। उनकी माता अंजना भगवान् शिव की अनन्य भक्त और पिता केसरी वानरो के सम्राट थे। उनके जन्म में वायुदेव का विशेष योगदान है इसलिए उनको मारुति नंदन और पवनपुत्र कहा जाता हैं। कनाथ के भावार्थ रामायण (16 वीं शताब्दी) में उल्लिखित एक कहानी में कहा गया है कि जब अंजना शिव की पूजा कर रही थी, तब अयोध्या के राजा दशरथ भी संतान प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे थे। परिणामस्वरूप, उनको अपनी तीन पत्नियों द्वारा साझा किए जाने वाला पवित्र हलवा प्रसाद के रूप में  प्राप्त हुआ, जिससे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। दिव्य शक्तियो के द्वारा, वायुदेव ने उस हलवे का एक टुकड़ा छीन कर अंजना को अपने बहिर्मुखी हाथों से सेवन कराय। परिणामस्वरूप हनुमान उनसे उत्पन्न हुए। अगर इस सम्पूर्ण ब्रहमांड में बल, बुद्धि, गुणों और भक्ति की कोई पराकाष्ठा है तो वह महावीर बजरंगबली हैं। यूं तो लाल लंगोट उनका एक मात्र वस्त्र है परन्तु ना जाने कितने ही अनगिनत गुणों से वह सुस्जजित और विभूषित हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें से बजरंगबली भी एक हैं। माता सीता ने उनको अज़र अमर रहने का वरदान दिया है। हनुमान जी महाराज ज्ञान और गुण के सागर हैं जिसकी गहराई का कोई अनुमान नहीं। सीता माता के अतिप्रिय हनुमान अष्ट सिद्धि और नौ निधि के दाता हैं। उनको प्रथम पूज्य श्री गणेश जी के साथ नमन किया जाता है जिससे सभी शुभ कार्य बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हों। कांधे का जनेऊ उनके अखंड बाल ब्रह्मचर्य की गाथा गाता है। हनुमान चालीसा या सुंदर कांड के नित्य पाठ मात्र से सभी संकट दूर होते हैं और शुभ कार्य की सिद्धि होती है। हनुमान चालीसा का पाठ करने से सभी आसुरी शक्तियों का नाश होता हैं, क्‍लेश समाप्‍त हो जाते हैं और व्‍यक्ति के मन से भय दूर हो जाता है। तीनो लोक, चारों युग और दशों दिशाएं उनको कीर्ति का बखान करते हैं। उनका उल्लेख ना केवल रामकथा में है अपितु कई अन्य ग्रंथों, जैसे महाभारत और विभिन्न पुराणों में भी किया गया है वह आंतरिक आत्म-नियंत्रण, विश्वास और सेवा के उत्कर्ष का प्रतीक हैं।



मनोजवं मारुत तुल्यवेगंए जितेन्द्रियं बुद्धिमना वरिष्ठम।
वातात्मजं वानरयूथ मुयंएश्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
अर्थात् सर्वतोमुखी शक्ति के प्रतीक हनुमान जी शरीर के साथ-साथ मन से भी अपार बलशाली हैं। वह वासना को जीतने वाले, जितेन्द्रिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठतम हैं।
हनुमान जी की गाथा को हम क्या समझ सकते हैं जिनका गुणगान खुद भगवान् श्री राम से अपने मुखारविंद से गाया है। भगवान् राम ने उनके लिए कहा, तुम मम प्रिय भरत सम भाई अर्थात् तुम मेरे सबसे प्रिय भाई भरत के समान हो।
हनुमान जी महाराज कलयुग के प्रधान देवता हैं। उनके द्वारा लिखी गई सबसे पहली रामकथा हनुमाद् रामायण आज की गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरिमानस के नवीन स्वरूप में सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रिय है। हनुमान जी महाराज की सभी देवी, देवताओं, नर, नाग और किन्नरों में लोकप्रियता अद्वितीय है। हनुमान जी की विशेषताओं में हिंदू धर्म के वेदांत दर्शन, वेद, एक कवि, एक बहुरूपिया, एक व्याकरण, एक गायक और संगीतकार के रूप में  शामिल हैं। अंत में अपने विचारों को हनुमान ही महाराज के सबसे प्रिय उदघोष "जय श्री राम" कह कर विराम देता हूं।



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