“ मुझको बांधों ना इन बंधन में,
धर्म, जात - पात के चंदन में।
मुझको जकड़ों ना इन धंधों में,
सम्मान - अपमान के संबंधों में।
मुझको छोड़ो ना इन झंझट में,
गुलामी - आजादी के हुड़दंगों में।
मैं इश्क़ हूं, इन हवाओं में,
मुझे रहने दो इन फिजाओं में। ”
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-Munendra Singh