The दोस्ती

अक्सर जब भी दोस्ती पर कोई निबन्ध या लेख पढ़ता हूं तब उसकी पहली पंक्ति यही होती है कि "व्यक्ति का प्रत्येक रिश्ता ईश्वर उसके जन्म से पहले ही बना कर भेजता है, परन्तु दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसका चुनाव व्यक्ति स्वयं करता है। इसलिए यह रिश्ता बहुत अनमोल है।" यह पंक्तियां कुछ हद तक सार्थक भी हैं परन्तु सच्ची और अच्छी दोस्ती भी सिर्फ ईश्वर की देन हो सकती है। लोग अक्सर कहते हैं कि दोस्ती अच्छे लोगों से करो, दोस्तों का चयन बहुत सोच समझ कर करो परन्तु सत्य तो यही है कि दोस्ती गुण या अवगुण देख कर नहीं की जा सकती और जिस दोस्ती का मानक गुण-अवगुण हो वो दोस्ती हो ही नहीं सकती। जैसे प्रेम किया नहीं जाता, हो जाता है वैसे ही दोस्ती भी कहां की जाती है, बस हो जाती है। और मित्रता तो बस प्रेम का दूसरा नाम भर है अन्यथा इनमें कोई अंतर नहीं है। दोस्त, जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। दोस्ती की कोई सीमा नहीं है जिससे उसको बांधा जा सके। दोस्तों को चुनते समय अगर आपके मन में उससे किसी भी प्रकार का लाभ लेने की इच्छा है तो फिर वह दोस्ती नहीं केवल व्यपार है।


किसी ने पूछा कृष्ण से, "दोस्ती का मतलब क्या है?"
कृष्ण ने उत्तर दिया "जहां दोस्ती है वहां मतलब नहीं होता!"

मेरे बहुत सारे दोस्त हैं और जब में यह लिख रहा हूं तब एक एक करके सबकी शक्ल मेरी आंखों से गुज़र  रही है। मेरे साथ एक विषम समस्या यह भी है कि मैं कभी किसी एक या दो लोगों को परम मित्र का शीर्षक नहीं दे पाता। मेरे लिए तो मेरे सारे प्यारे दोस्त ही परम मित्र हैं। कभी किसी विशेष को प्राथमिकता देना मेरे लिए संभव नहीं हो पाता। लोग अक्सर कहते हैं कि जो आपके अच्छे बुरे हर काम में आपका साथ दे वही आपका सच्चा मित्र है परन्तु मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि मित्रता का केवल एक ही मानक होना चाहिए कि जो आपको अच्छे कामों के लिए प्रोत्सहित करे और बुरे कामों को करने से रोके। हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हम अक्सर ही छोड़ देते है जोकि ईश्वर द्वारा दिए गए रिश्तों में दोस्ती को जन्म देना होता है और इसे करना कोई बहुत मुश्किल कार्य नहीं है। इसके लिए बस आपको हर किसी से संवाद स्थापित करना है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, संवाद ही एक मात्र ऐसा जरिया है जिसके माध्यम से आप अपने माता पिता, गुरू और सभी रिश्तेदारों से दोस्ती का रिश्ता बहुत सहजता से बना सकते हो। और निश्चित तौर पर इसमें आपका बहुत अधिक फायदा है। 


एक व्यक्ति ने शादी के बाद अपने दोस्तों से बातचीत करना बंद कर दिया। बहुत समय बाद जब वापस  उसकी बात हुई तब उसने अपने दोस्त से पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया तब उसने बहुत सारे जवाब दिए। मित्र उसकी मजबूरी पहले से ही समझता था पर वह उसको एक सलहा देना चाहता था। इसके लिए उसने उससे पूछा, "तेरे लिए शादी और मित्रता में क्या अधिक महत्व रखता है?"
व्यक्ति ने उत्तर दिया, "मेरे लिए तो मेरी शादी और मेरा हमसफ़र अधिक महत्व रखता है।"
दोस्त मुस्कुराया उसने उसको कहा, "मित्र! शादी को छोड़ कर मित्रता को अधिक प्राथमिकता और महत्व दो।" उसका इशारा उसकी और अपनी मित्रता को लेकर नहीं अपितु उसके और उसकी पत्नी के रिश्ते को लेकर था। पति - पत्नी अगर शादी के रिश्ते से पहले दोस्ती के रिश्ते को अपने जीवन में आत्मसार कर लें तो उनके वैवाहिक जीवन में कभी कोई बड़ी समस्या पैदा नहीं होगी। किसी से रिश्ते नातों को भुला कर जब आप दोस्त की तरह व्यवहार करते हैं तब आप मुक्त अवस्था में होते हैं जिससे आपका वह रिश्ता सिर्फ रिश्ता नहीं दोस्ती का रिश्ता बन जाता है। और यह आपके जीवन को सुगम व सरल कर देता है।
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर!
ना काहू से दोस्‍ती, न काहू से बैर!!

कबीर ने भले इस दोहे के माध्यम से अपने मोह बंधनों को त्यागने के लिए कहा हो परन्तु मैं तो यही कहूंगा "सबसे राखो दोस्ती, ना काहू से बैर!"



भगवान् श्री राम और भगवान् श्री कृष्ण के चरित्रों को मैं सैदेव एक दूसरे से विपरीत पाता हूं परन्तु दोनों के चरित्र एक चीज समान है, और वह चीज दोस्ती है। दोनों ने किसी ओर रिश्ते को इतना उच्च स्थान नहीं दिया जितना कि दोस्ती को।
जिस प्रकार दोस्ती को किसी बंधन में बांधा नहीं जा सकता उसी प्रकार इसको शब्दों में भी समेट पाना  नाुमकिन है। इसलिए अपने शब्दों को यहीं विराम देता हूं। अपने दोस्तों को सहेज कर रखिए अपने फायदे का सोच कर नहीं दोस्त समझ कर, दोस्त समझ कर रखंगे तो अधिक फायदे में रहेंगे।


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