मंज़ूर ही ना था

"यूं तो महफिलों की कमी ना थी ज़िन्दगी में
बस मुझे जाम लगाना ही ना था
यूं तो खेल सकता था मैं भी किसी के जज़्बातों से
पर मेरी परवरिशों को ये मंज़ूर ही ना था"
- वासुदेव


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