इस ब्लॉग का मुख्य केंद्र "गूंज" है। गूंज दो शब्दों का एक छोटा सा शब्द, जिसकी भाषा या व्याकरण में शायद इतना महत्व नहीं है परन्तु असल जिन्दगी में गूंज का हिस्सा इतना सीमित नहीं है। गूंज ध्वनि का प्रतिबिंब है जो प्रत्यक्ष ध्वनि के बाद देरी से श्रोता पर पहुंचती है और बार-बार पहुंचती है, जब तक उसका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त नहीं हो जाता। क्या आपको पता है गूंज को अंग्रेज़ी भाषा में इको (echo) कहा जाता है, और इसका कारण एक ग्रीक लोक कथा की नायिका और उस समय की खलनायिका है। ग्रीक के महान देवता ज़ीउस को सुंदर अप्सराओं के साथ सहवास करना पसंद था और इस कार्य को संपन्न करने हेतु वह अक्सर पृथ्वी पर आते थे। आखिरकार, ज़ीउस की पत्नी हेरा को संदेह हुआ और वह ज़ीउस को अप्सराओं के साथ पकड़ने का प्रयास करने लगी और उन्हें यह सफलता ओलिंपस नामक एक पहाड़ में मिली। जहां वह इको नाम की एक पहाड़ी अप्सरा के साथ थे। इको ने ज़ीउस का बचाव करने के लिए हेरा को अपनी बातों में उलझना चाहा जिससे हेरा ने कुपित होकर इको को श्राप दिया कि घृणित अप्सरा इको केवल किसी अन्य व्यक्ति के सबसे हाल ही में बोले गए शब्दों को दोहरा सकती है। समाज ने इको की बोलने की क्षमता को उसके जीवन पर्यन्त कोसा गया और मज़ाक उड़ाया। आज उसी भूल का पश्चाताप करने हेतु इको के सम्मान में गूंज को अंग्रेज़ी भाषा में इको कहा जाता है।
कितनी अजीब बात है ना कि हम एक व्यक्ति को उसकी एक कमी के कारण उसको जीवन पर्यन्त कोसते हैं, अनादर करने की सभी सीमाओं को खण्डित कर देते हैं। और उसकी मृत्यु के पश्चत उसके सम्मान में ना जाने क्या-क्या दुनिया भर का ताम झाम करते हैं। यह ठीक उसी तरह है जैसे एक बच्चा खिलौना तोड़ने के बाद उसको वापस पाने के लिए ज़ोर ज़ोर से रोते हुए चिल्लाता है कि वह खिलौना कितना अच्छा था, कितना अद्भुत था। जब कोई चीज़ जीवंत हो तब उसका अनादर करो और जब वह नहीं रहे तो उसकी तारीफों के कसीदे पढ़ों।
गूंज का एक स्वभाव है वह सदैव टकराव के साथ ही उत्पन्न होती है और तभी उत्पन्न होती है जब ध्वनि में अधिक शक्ति हो या परिस्थितियां गूंज के लिए उचित हों। हमको गूंज से अपने जीवन में यह शिक्षा जरूर लेनी चाहिए कि जब भी आपको कभी प्रतिकार या टकराव का रुख अपनाना हो तो अपनी सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग करें जिससे कि उसका कुछ ना कुछ फल आपको ज़रूर मिले।
मैंने अनेक भाषणों में अनेक नेताओं को यह हुंकार भरते देखा है कि "नारे या स्लोगन को इस तीव्र शक्ति से कहो कि इसकी गूंज देश के इस कोने से उस कोने तक हो।" शायद इसका कारण यह है कि गूंज कि आवृति बार बार होती है और नेता शायद यही चाहता भी है कि उसका नारा बार बार सुनाई पड़े। एक नारा और उसकी गूंज के प्रभाव का आकलन आप नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के उस "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा" नारे से भी कर सकते है जिसके कारण आज़ादी का एक पत्र भारत वर्ष के घूमा और लोगों ने अपने रक्त से उस पर हस्ताक्षर किए। ऐसा नहीं है कि वह भौतिक गूंज का प्रभाव था या आज भी ऐसे नारों का कोई भौतिक प्रभाव होता है। परन्तु यह गूंज वह है जो आपके अंतर मन को झकझोर कर रख देती है। गूंज तो उपमा मात्र है, यहां बात उस अंतर मन की आवाज़ की हो रही है जो हमें किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है।
गूंज का एक गुण यह भी है कि यह संगठन की शक्ति को प्रदर्शित करता है और एकल व्यक्ति की शक्ति को भी। हम अक्सर देखते हैं जब कोई स्टेडियम या हॉल में अकेले पुकार करे तो उसकी उचित गूंज कानों तक पहुंचती है परन्तु जब उसी स्टेडियम या हॉल में किसी मैच के दौरान बहुत सारे लोग एक साथ हुंकार भरते हैं तो उसकी शक्ति का अंदाज़ा वहां और बाहर उपस्थित सभी को होता है।
एक गूंज वह भी है जो अक्सर गायक अपनी आवाज़ को सुसजित करने के लिए जानबूझ कर उपयोग करते हैं। परन्तु उसको हमेशा यह ध्यान भी रखना होता है कि उसकी आवाज़ और कृत्रिम गूंज में सैदेव संतुलन बना रहे और वह अगर ऐसा नहीं करता है तो उसकी गायकी पर उस असंतुलन का प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है। इस प्रकार गूंज हमें अपने माध्यम से यह शिक्षा भी देता है कि अति किसी चीज़ के लिए कितनी घातक साबित हो सकती है। जीवन में संतुलन का महत्व गूंज भलीभांति समझता है।
धन्यवद्!
0 टिप्पणियाँ