विपति काल कर सतगुन नेहा।श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।
बाबा तुलसीदास कहते हैं कि सच्चा मित्र वह है जो कुछ लेने देने में अपने मन में किसी प्रकार की शंका नहीं रखता हो, तथा संकट की घड़ी में भी अपनी सहज बुद्धि और बल से सदैव अपने मित्र का हित करता हो ।श्रुतिओं के अनुसार विपत्ति के समय में भी अपने मित्र पर स्नेह रखने वाला ही सही मायनों में मित्र कहलाने योग्य है।
तुलसीदास जी ने मित्रता को इस दोहे में ऐसे समाहित किया है जैसे मानो गागर में सागर! मैं अपने सभी दोस्तों से कहना चाहता हूं कि मेरे साथ लेन देन में कोई शंका ना रखें। और मुझसे ऐसी कोई उमीद ना रखें। ख़ैर हास्य से अगर बाहर निकलें तो आज के जीवन में बिना शंका के लेन देन का व्यवहार ना के बराबर ही है। मित्रता भी अब लाभ हानि के दायरे में बंध चुकी है, जिसके कारण शायद मित्रता की मूल भावना पर आंच आती दिख रही है। इस सब के बाद भी सबसे सकारात्मक बात यह है कि आज भी लोगों का विश्वास और प्रेम सबसे अधिक अगर किसी संबंध में बचा हुआ है, तो वह मित्रता है। और मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में एक दिन जब सभी रिश्ते-नाते ख़तम हो जायेंगे तब दोस्ती की पताका हर जगह लहराती दिखेगी।
ऐसी मान्यता है कि समय एक ऐसी इकाई है जिससे कोई भी मुक्त नहीं है। परन्तु मेरी दृष्टि में मित्रता एक ऐसी चीज है जो स्वयं एक इकाई है और समय से मुक्त है। इसका अनुमान भगवान् कृष्ण और अर्जुन के उस गीता संवाद से लगाया जा सकता है जिसके लिए द्वापर युग में समय की गति को रोक दिया गया था। जिसका एक मात्र उद्देश्य कृष्ण का अपने मित्र को धर्म के लिए प्रेरित कर अपने मित्रता धर्म को प्रतिपादन करना था। भगवान् राम ने अपने मित्र सुग्रीव के लिए बाली को छुपकर मारा और यह सिद्ध कर दिया कि मित्रता व्यक्तिगत धर्म-अधर्म से भी मुक्त है। उद्देश्य निष्कलंक होना चाहिए केवल और यही मित्रता की सार्थकता भी है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की मित्रता पर लिखित पुस्तक को पढ़ा जिसमें दोस्त के चुनाव पर अधिक जोर दिया गया।
"कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है।" यही वाक्य उस पूरी पुस्तक का सार है।
मेरा दृष्टि कोण थोड़ा भिन्न है यदि दोस्तों के चुनाव में भी अगर हम एक मानक तय कर देते हैं तो यह मित्रता को बंधन की बेड़ियों में जकड़ने का पहला प्रयास है। और इस प्रकार तो अच्छे लोगों के साथ एक गुट और बुरे लोगों के साथ दूसरा गुट तैयार हो जाएगा। अगर कुसंगती अच्छे गुण वाले व्यक्तियों को प्रभावित कर सकती है तो सुसंगती भी बुरे गुण वाले व्यक्तियों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। भगवान् वाल्मिक इसका सबसे बड़ा उदहारण हैं जो केवल कुछ समय की सुसंगती से मनुष्य से ब्रह्म बने। मेरा जीवन दर्शन कहता है कि कीचड़ में भी कमल खिल सकता है, और कमल भी कीचड़ के तालाब की शोभा बन सकता है। और दोस्ती तो वह अकेला दीपक है जोकि चारों ओर से अंधकार से घिरा होने के बाबजूद भी अपने उद्वियत प्रकाश से अंधकार समाप्त कर हर जगह को प्रकाशित करता है।
एक तरफ जहां धर्म के साथ कृष्ण और अर्जुन थे और दूसरी ओर अधर्म के साथ कर्ण और दुर्योधन थे, वहां दोनों ओर से दोस्ती की ऐसी ज्वाला हमेशा प्रजवालित रही जो युद्ध से पहले, मध्य और अंतिम तक निर्णायक रही। मित्रता की बात हो और सुदामा कृष्ण के उस प्रसंग को याद ना किया जाए जिसमें दोनों का एक दूसरे के प्रति समर्पण देख पूरा विश्व मंत्रमुग्ध हो उठा। ऐसी ही मित्रता की ज्वाला मेरे और मेरे सभी दोस्तों के अंदर सैदेव ज्वलंत रहे ऐसी मेरी मनोकामना है। और बाकी सभी के लिए भी यही शुभकामना करता हूं।
सभी को मित्रता दिवस की शुकामनाएं और अंग्रेज़ी में "Happy Friendship Day!"
धन्यवद्!
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