प्रकाश दिवस - गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म दिवस

धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वाले में गुरु तेग़ बहादुर जी का आज जन्म दिवस है। कट्टरता के खिलाफ समाज में आशा, विश्वास और साहस का संचार करने वाले अमर बलिदानी श्री गुरु तेग बहादुर जी को उनके 400वें प्रकाश दिवस के अवसर पर याद करना अत्यंत ही गौरवपूर्ण अनुभूति देता है। छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद जी की एक बेटी बीबी वीरो और पांच बेटे थे जिनके नाम बाबा गुरदित्त, सूरज मल, अनी राय, अटल राय और त्याग मल। त्याग मल का जन्म 1 अप्रैल 1621 के शुरुआती घंटों में अमृतसर में हुआ था, जिन्हें तेग बहादुर (द तलवार ऑफ द स्वॉर्ड) के नाम से जाना जाता था। उन्हें यह नाम गुरु हरगोबिंद जी ने मुगलों के खिलाफ लड़ाई में अपनी वीरता दिखाने के बाद दिया था। उन्होने अपने जीवन पर्यन्त हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। कट्टर मुस्लिम शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग़ बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। सिखों के नवे गुरु तेग़ बहादुर जी अवतारी, निर्भिक और परम वीर थे। हिन्दू और सिख कभी उनके अमूल्य बलिदान को ना तो चुका सकते हैं और ना ही भुला सकते हैं। उन्होंने सामाजिक स्तर पर चली आ रही रूढ़ियों, अंधविश्वासों की कटु आलोचना कर नए सहज जनकल्याणकारी आदर्श स्थापित किए। उन्होंने लंबे समय तक एकांत और चिंतन के मंत्र को प्राथमिकता दी। 3 फरवरी 1633 को उनका विवहा माता गुजरी से हुआ, वह बिहार स्थित पटना की एक अहीर की बेटी थी | उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें व अंतिम गुरु थे।

एक घटना मैं बचपन से सुनता आया हूं जब भी उस घटना को स्मरण करता हूं मेरी भुजाएं फड़कने लगती हैं और खून खौलने लगता है। उस घटना को आप सभी के साथ साझा करना चाहता हूं।
नौ वर्ष का एक छोटा सा बालक गोविन्द राय (गुरु गोविंद सिंह) जब सिखों के गुरु और अपने पिता से धर्म का उपदेश प्राप्त कर रहा था तभी मुगल शासक औरंगजेब से संरक्षण प्राप्त किए कुछ कट्टरपंथी मुस्लिमों का एक हुजूम गायों को काटने और कश्मीरी पंडितों का जबरन धर्म परिवर्तन करने के लिए ले जा रहा था। तब गुरु गोविन्द सिंह जी ने इसके विरुद्ध गुरु तेग बहादुर जी से फरियाद की। तब गुरु जी ने उत्तर दिया कि इन सबकी मुक्ति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है। तब गोविन्द सिंह जी ने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा पिता जी आप सिखों के गुरु हैं, आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है!
इतनी बात सुनकर गुरु तेग बहादुर जी झट से तलवार लेकर अपने स्थान से उठे और कश्मीरी पंडितों व गायों को मुक्त करा लाए।
फलस्वरूप औरंगजेब ने उनको बंदी बना लिया और उन्हें अपना धर्म परिवर्तन करने को कहा। परन्तु गुरु जी ने किसी भी कीमत पर इस्लाम स्वीकार से साफ इनकार कर दिया। इस्लाम न स्वीकारने के कारण 11 नवम्बर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से गुरु तेग़ बहादुर जी का सिर कटवा दिया। गुरुद्वारा शीशगंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब, उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया।

उस दिन मुझे सीख मिली कि धर्म सर्वोपरि है। जिस धर्म को बचाने के लिए गुरुओं और उनके पुत्रों से अपना बलिदान दिया है उस धर्म और सत्य के लिए अगर जान भी देनी पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। धर्म की रक्षा हेतू “स्वयं के जीवन के आत्मोत्सर्ग” के द्वारा मतांधता एवं कट्टरता के खिलाफ समाज में आशा, विश्वास और साहस का संचार करने वाले अमर बलिदानी राष्ट्रपुरुष श्री गुरु तेग बहादुर जी को शत-शत नमन एवं उनके 400वें प्रकाश दिवस के शुभावसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।

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