महावीर जयंती - अहिंसा का नए सिरे से उदय

भगवान् ऋषभदेव द्वारा स्थापित किए गए जैन धर्म में तीर्थंकरों की संख्या चौबीस कही गयी है। भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (24वें) तथा अंतिम तीर्थंकर हैं। आज उन्हीं भगवान् महावीर की जयंती है। अहिंसा और सत्य को तीर्थंकर महावीर स्वामी ने इंसान का सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया है।
भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के निकट  कुंडलग्राम में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन हुआ था। भगवान् महावीर इक्ष्वाकु वंश के वंशज थे, वही वंश जोकि भगवान् राम का भी वंश था। उनके पिता राजा सिद्धार्थ तथा माता त्रिशला भी जैन परंपरा के अनुयाई थे। उनके बचपन का नाम वर्धमान था। इसके अतिरिक्त वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति जैसे नामों से उनको संबोधित किया जाता है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। परन्तु श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ। अपने 12 वर्ष के पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे। उनके 11 गणधर (मुख्य शिष्य) थे जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे। उन्होंने कहा कि जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है और हमें इसके लिए काम करना होगा बिना किसी संकोच के।



शिक्षाएं और उपदेश - भगवान महावीर स्वामी कहते हैं,
सत्य - जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
अहिंसा – इस लोक में जितने भी जीव है उनकी हिंसा मत कर, उनकी रक्षा करो, प्रति अपने मन में दया का भाव रखो।
अचौर्य - दूसरे की वस्तु बिना उसकी आज्ञा के ग्रहण करने को जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।
अपरिग्रह – जो आदमी सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता।
ब्रह्मचर्य- ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है।
भगवान् महावीर ने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसासत्यअपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।
12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। वर्तमान अशांत, आतंकी, भ्रष्ट और हिंसक वातावरण में महावीर की अहिंसा ही शांति प्रदान कर सकती है। महावीर की अहिंसा केवल सीधे वध को ही हिंसा नहीं मानती है, अपितु मन में किसी के प्रति बुरा विचार भी हिंसा है। 

“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: ”
अर्थात अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म हैं और जब जब धर्म पर आंच आये तो उस धर्म की रक्षा करने के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म हैं। यानि हमें हमेशा अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए लकिन अगर हमारे धर्म पर और राष्ट्र पर कोई आंच आ जाये तो हमें अहिंसा का मार्ग त्याग कर हिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए। क्यूंकि वह धर्म की रक्षा की लिए की गई हिंसा ही सबसे बड़ा धर्म हैं।
परंतु भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, “अहिंसा परमो धर्मः” अर्थात अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म हैं हमें हमेशा अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ