भारत के 200 मिलियन मुसलमानों के खिलाफ अफवाहों और गुस्से की नई लहर तब शुरू हुई जब दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके में एक रूढ़िवादी मुस्लिम संस्था तब्लीग-ए-जमात के मुख्यालय में मरकज के नाम पर हजारों की संख्या में भीड़ जुटने की सूचना देश को मिली। अधिकारियों द्वारा इमारत खाली करने के बाद सैकड़ों सदस्यों का वायरस परीक्षण सकारात्मक पाया गया। देश भर में कई मामले ऐसे भी सामने आए जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस मरकज से जुड़े थे। इसके प्रति लोगों का गुस्सा मीडिया व सोशल मीडिया पर जम कर फूटा। लोगों के अंदर ये भावना घर कर गई कि देश एक ओर तो अपनी इच्छाओं का त्याग कर इस महामारी से निपटने की कोशिश कर रहा है वहीं दूसरी ओर धर्म के नाम पर हुए एक जमावड़े ने उनकी सारी कोशिशों को नाकाम कर दिया। यह गुस्सा केवल मरकज के लोगों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि सम्पूर्ण मुस्लिम समाज इसकी चपेट में आया। इस क्रोध व भय का मुख्य कारण यह भी रहा कि तब्लीग-ए-जमात का मुख्य कार्य घर - घर जा कर लोगों से संपर्क कर उनको इस्लाम की शिक्षाओं के प्रति जागरूक करना है, जिससे वायरस के पूरे देश में फैलाव का खतरा ओर बढ़ गया था।
फलस्वरूप मुस्लिमों को भेदभाव का शिकार होना पड़ा परन्तु बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो सोशल डिस्टेंस की प्रक्रिया को ही भेदभाव के तौर पर ले रहे हैं। इस मुस्लिम भेदभाव को वैश्विक मीडिया ने इतनी कवरेज़ दी जैसे विश्व में इस मुद्दे के अतिरिक्त कोई ओर मुद्दा हो ही नहीं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि वैश्विक और राष्ट्रीय मीडिया में सेक्युलरिज्म और लीबेरालिज्म के नाम पर लेफ्ट पत्रकारों द्वारा लेफ्ट एजेंडा ही चलाया जाता है। भले ही मुस्लिमों के प्रति भेदभाव बढ़ा है परन्तु इसके ज़िम्मेदार वह स्वयं हैं।
"कुछ तो मजबूरियां रही होंगी
यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता"
मैं किस भेदभाव का समर्थन नहीं करता क्योंकि कई बार कुछ चीजों के लिए मुझे स्वयं को भी भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। किसी भी प्रकार का भेदभाव एक तरफ तो नफ़रत को जन्म देता दूसरी ओर लोगों को कट्टरता के प्रति प्रेरित करता है। लेकिन मुस्लिम अल्पसंख्यकों को यह आत्म विश्लेषण करना ही होगा कि अचानक ऐसा क्या हो गया है जिसके कारण भारत ही नहीं अपितु विभिन्न देशों में उनके प्रति द्वेष और भेदभाव की भावना बढ़ी है। दूसरे पक्ष को यह समझना होगा कि आप अपराधी को निशाने पर ले रहे हो या एक पूरे तबके को।
भारत देश के एक बड़े तबके में हिन्दुओं के प्रति इतनी घृणा और द्वेष की भावना है जो कभी कभी प्रत्यक्ष रूप से सर्वविदित हो जाती है। बीजेपी से मुस्लिमों की घृणा का एक कारण यह भी है कि
वह केवल एक मात्र ऐसी पार्टी है जो हिन्दुओं को भी उतनी ही मान्यता देती है जितना कि इस देश के मुस्लिमों को 70 साल तक मिलती रही। एक खुन्नस यह भी है कि आज़ादी के बाद देश में जो सरकार बनी वह हमेशा अल्पसंख्यकों की सहायता से चुनी गईं। पहली बार ऐसी कोई सरकार अाई जिसने उनके अस्तित्व को ही झटका दे दिया है, इस पार्टी ने केवल इस देश के बहुसंख्यकों के दम पर अपनी सरकार बनाई। समस्या यह भी है कि भारत का अल्पसंख्यक यह चाहता है कि अगर उनका या बहुसंख्यकों का भी कोई कार्य है तो केवल उनके अनुसार हो, देश की जो हालत हो, वह हो परन्तु उनके हितों की रक्षा सर्वोपरि हो। मौजूदा सरकार को तानाशाही सरकार कहा जाता है क्योंकि इस बार उनके पसंद की सरकार नहीं आयी। मैं मुस्लिम बहुल क्षेत्र से आता हूं यहां धुर्वीकरण स्पष्ट रूप से देखता भी हूं और महसूस भी करता हूं। जहां जाता हूं प्रधानमंत्री आवास योनान्तर्गत घर बने हुए पाता हूं, जनधन खातों से अगर किसीको सबसे अधिक लाभ पहुंचा है तो वह इस देश का अल्पसंख्यक समुदाय ही है। परन्तु फिर भी उनके अपने सर्वोपरि होने का घमंड और बीजेपी से उनकी घृणा के कारण वह यह भी मूल्यांकन नहीं कर पाते कि उनका कल्याण किस सरकार के दौरान अधिक हुआ है।
मंथन दोनों पक्षों को करना होगा, सरकार को अपने स्तर पर इस समस्या के समाधान के लिए भ्रसक प्रयास करने होंगे।
सभी से प्रेम करें। अपना, अपने और जो अपने नहीं हैं उनका भी ख़्याल रखे। प्रेम से नफ़रत हमेशा हरती अाई है और हारती रहेगी।
धन्यवाद्!
0 टिप्पणियाँ