गंगा दशहरा - गंगा अवतरण की कथा

आज गंगा दशहरा यानि गंगावतारन दिवस है। पुराणों और शास्त्रों में गंगा दशहरा का दिन महापुण्यकारी माना गया है क्योंकि इसी दिन पापों का निवारण करने वाली और मोक्ष (जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्रदान करने वाली, मां गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। गंगा दशहरा माह ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में जब दूसरा कदम स्वर्ग में रखा तब उनके चरण कमलों से गंगा मां का अवतरण हुआ जिन्हें भगवान् ब्रह्मा ने अपने कमंडल में स्थान दिया।


रामायण के बाल काण्ड में ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र भागीरथ और गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के बारे में बताते हैं कि अयोध्या के राजा सागर ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। परन्तु देवताओं के राजा इंद्र ने जलन वश यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसे ध्यानस्थ ऋषि कपिला के आश्रम के पास बांध दिया। 
राजा के 60000 पुत्रों ने जब घोड़े को खोज लिया तब उन्हें लगा कि ऋषि ने ही घोड़ा चुरा है। राजकुमारों ने ऋषि का अपमान कर उन्हें ध्यान से विचलित कर दिया, जिससे वह क्रोधित हो गए। उनके नेत्रों से निकली क्रोधाग्नि ने सभी राजकुमारों को भस्म कर दिया। अंततः राजा ने अपने पौत्र अंशुमान को राजकुमारों की खोज के लिए भेजा। अंशुमान ने ऋषि कपिला से क्षमा याचना की और राजकुमारों का उद्धार करने का निवेदन किया । ऋषि कपिला ने प्रसन्न होकर उन्हें पवित्र गंगा को पृथ्वी पर लाने का निर्देश दिया। 
अंशुमान ने हिमालय पर तपस्या शुरू की, उनके पश्चात् उनके पुत्र दिलीप ने और दिलीप के पश्चात्  उनके पुत्र भागीरथ ने कठोर तपस्या की। भगवान् ब्रह्मा भगीरथ के कठोर तप से प्रसन्न हुए और गंगा को पृथ्वी पर लाने की अनुमति प्रदान की। मां गंगा को यह अपमानजनक लगा। तब उन्होंने आकाश से गिरते ही पूरी पृथ्वी को अपने वेग से नष्ट करने का निश्चय किया। भयभीत होकर भगीरथ ने भगवान् शिव से मां गंगा के वेग को धारण करने की प्रार्थना करी। अहंकारवश मां गंगा भगवान् शिव के सिर पर गिर गई। परंतु भोलेनाथ ने उन्हें शांति से अपनी जटाओं में स्थान दिया। भगवान् शिव के स्पर्श ने गंगा को ओर भी पवित्र कर दिया। 


भगवान् शिव ने गंगा को सात धाराओं के रूप में मुक्त किया - भागीरथी, अलकनंदा, जान्हवी, सरस्वती, भिलंगना, ऋषिगंगा और मंदाकिनी। गंगा ने भागीरथ का अनुसरण किया, लेकिन अपनी प्रचंड गति के साथ आसपास के सभी गाँवों और जंगलों को नष्ट कर दिया परन्तु इससे ऋषि जह्नु क्रोधित हो गए। अपनी योगिक शक्ति का उपयोग करके, ऋषि जह्नु ने पूरी गंगा को पी लिया। भगीरथ ने ऋषि से क्षमा की याचना की और उन्होंने गंगा को उनकी जांघ से काटकर मुक्त कर दिया और इसी कारण से गंगा को 'जाह्नवी' या 'जाह्नस्ता' भी कहा जाता है। भागीरथ के प्रयासों के कारण, मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई इसलिए उनको भागीरथी के रूप में भी जाना जाता है।

दुनिया की कोई भी नदी लोगों से इतना प्यार, भक्ति और ध्यान जीतने में सक्षम नहीं है जितना कि गंगा। पुराणों में पवित्र गंगा के रूप में किसी अन्य नदी का उल्लेख नहीं किया गया है।

हर हर गंगे
जय गंगा मइया

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