चक्र: सम्मान-अपमान और आत्महत्या

जब 14 जून 2020 को, सुशांत सिंह राजपूत, मुंबई के बांद्रा में अपने घर में पंखे से लटके हुए मृत पाये गये तब पूरे देश में मानों एक मायूसी की लहर दौड़ गई। कुछ दिनों पहले ही एक ऐसी ही घटना एक १२ वीं कक्षा के छात्र के साथ हुई। उसकी आत्महत्या का कारण जब मैंने जाना तब उसने मुझे अन्दर तक झकझोर दिया। 14 जून को अमृतसर का एक छात्र किसी काम से बाजार गया था। उसके पास हेलमेट नहीं था। बाजार से आते वक्त पुलिस ने उसे रोक लिया। उन्होंने उसका चालान बनाया। लेकिन अजय के पास पैसे नहीं थे। पास में ही उसके पिता की दुकान थी। वह एक पुलिसकर्मी को चालान के पैसे देने के लिए दुकान पर ले गया। यहां पर पुलिसकर्मी ने कहा कि अजय की स्कूटी से कॉन्डम मिले हैं। अजय ने इससे इनकार किया। लेकिन उसके पिता ने उसे डांट लगा दी। 

उसको इस घटना से इतना अपमान महसूस हुआ कि उसने अपना जीवन ही समाप्त कर लिया। क्या यह भी कोई बात है भला आत्महत्या के लिए? क्या इतनी सी बात पर कोई आत्महत्या कर लेता है? हम लोगों को लग सकता है यह तो इतनी बड़ी बात नहीं थी कि जीवन लीला समाप्त कर ली जाए परन्तु जिसने जीवन में ये सब काम ना किया हो उसके लिए ये जीवन मृत्यु का प्रश्न भी बन सकता है। 

सच्चाई तो यह है कि हमने अपने जीवन  में सम्मान-अपमान  को कुछ ज्यादा ही अहमियत दे दी है हर बात को सम्मान अपमान के तराज़ू में रखना हमारी आदत बन गई है। छोटी-छोटी बातों पर अपने आप को अपमानित महसूस करना, कमज़ोरी की बहुत बड़ी निशानी है। अगर हम सम्मान और अपमान की गाड़ी में ना बैठे तो हमरे जीवन की अधिकतम समस्यायें समाप्त हो जाएगी। मुझे तो ऐसा लगता है कि हम अपने जीवन में अनदेखी करना भूल सा गए हैं। छोटी चीज़ों को बड़ी तब्ज़्जों देने में हमको बहुत मज़ा आने लगा है।

आपको शायद ये बाते ज्ञान झाड़ने वाली लगें पर मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। भगवान् राम ने सदैव अपने जीवन में सम्मान-अपमान, सही-ग़लत, राजधर्म, परिवार धर्म में ही उलझे रहे अतः उनके जीवन में दुःख ही दुःख देखने को मिलता है। इसके उलट भगवान् कृष्ण ने कभी किसी की चिंता ना करते हुऐ हमेशा अपने मन की करी। समाज, परिवार, राज पाठ की चिंता ना करते हुऐ अपने सभी कार्यों को सार्थक किया। और शायद इसीलिए ही भगवान् कृष्ण के जीवन चरित्र में उनको दुःखी कम ही देखा गया। वह हमेशा मुस्कुराते रहते थे यही उनकी सबसे बड़ी विशेषता है।
"सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग"
ओशो के यह शब्द इतने ही सार्थक है जितना कि सूर्य का होना।

अभी कल ही एक १६ वर्ष की टिक टोक स्टार के आत्म हत्या की ख़बर ने सभी को चौंकाया। इसी श्रेणी में एक भैय्यू जी महाराज नाम के बहुत लोकप्रिय संत थे। परन्तु उन्होंने भी पारिवारिक समस्याओं के चलते आत्महत्या कर ली थी। अब ऐसे संत होने का और ऐसे ज्ञान का क्या फ़ायदा जो दूसरों को लेक्कचर देने के काम आए परन्तु जब बात अपने पर आए तो उसी ज्ञान की बत्ती बना कर गंगा में बहां दी जाए। अब सुशांत सिंह राजपूत की आख़िरी फ़िल्म छिछोरे के मूल संदेश "आत्महत्या कभी विकल्प नहीं होता" की बात ही कर लीजिए। आप दुनिया जमाने को ज्ञान बांटते फिरते हैं पर जब बात असल जिंदगी में खुद की हो तो उसी संदेश का खंडन खुद कर दो।
सत्य यही है कि हम नहीं जानते कि इस जन्म के अलावा कोई और जन्म भी हमको मिलने वाला है या नहीं अतः इसको समाप्त करने या छोटी चीज़ों के लिए इसे ख़तरे में डालना महामूर्खता की निशानी है।


Suicide Note of Amritsar Boy:



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